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Tuesday, November 29, 2011

चलते समय

 

तुम  मुझे  पूछते  हो ‘जाऊँ’?
मैं  क्या जवाब दूं तुम्हीं कहो।
‘जा ...’ कहते रुकती है जबान
किस  मुँह से तुमसे कहूँ रहो!

सेवा  करना  था  जहाँ  मुझे
कुछ भक्ति-भाव दरसाना था।
उन  कृपा-कटाक्षों  का बदला
बलि होकर जहाँ चुकाना था।

मैं  सदा  रुठती  ही  आयी,
प्रिय! तुम्हें न मैंने पहचाना।
वह  मान बाण-सा चुभता है,
अब देख तुम्हारा यह जाना॥
         ~सुभद्रा कुमारी चौहान

Picture courtesy: http://e-nidhi.com/

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