TRY Blogging

toothpaste for dinner

Wednesday, November 30, 2011

शब्दों से सबसे ज़्यादा भय उन्हें लगना चाहिए जो उनका भार

शब्दों से सबसे ज़्यादा भय उन्हें लगना चाहिए जो उनका भार पहचानते हैं - लेखक, कवि और वे जिनके लिए शब्द ही यथार्थ है. - अन्ना कामीएन्स्का





















न जाने क्यों,
पिछले कुछ दिनों से
शब्दों से
भय सा होता जा रहा है?
शब्द जो शक्ति थे,
ऊर्जा थे, अभीव्यक्ति थे,
अब भयावह रूप धर
अंतर्मन में घुसपैठ करना चाह रहे हैं.
उन्हें मूर्तरूप देने की
नाकाम कोशिश करता हूँ,
चाहता हूँ उन्हें
सतह पर रोक दूँ,
निचे तक झरने न दूँ
पर हर बार
खुद से मात खा लेता हूँ.
न जाने क्या था,
जो अब नहीं रहा?
न जाने क्या था,
जो खो गया है?
न जाने क्या है,
जो शब्दों की मार
इतनी तीव्रता से
अनुभूत करा रहा हैं?
न जाने क्यों,
पिछले कुछ दिनों से
शब्दों से
भय सा होता जा रहा है?
हे परमदिव्य,
मेरे शब्दों की रूह जगा दो !!!

0 comments: