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toothpaste for dinner

Monday, November 28, 2011

अबके तो मुस्कुरा भर

ज़ख्म देने और भरने के अलावा
उन पर अश्क बहाने या मुस्कुरा देने से ज्यादा का
इख्तेहार नहीं देती ज़िन्दगी अपने आप पर
जानता था वो...

अबके तो मुस्कुरा भर के रह गया...

2 comments:

रवि रतलामी said...

अच्छी पंक्ति.
परंतु आपका टैगलाइन - दुखी हैं? तो ब्लॉगिंग क्यों नहीं करते! पसंद आया. :)

इसे कॉपी-पेस्ट कर रहा हूँ अपने ब्लॉग में क्योंकि दुखी हूँ, और ब्लॉग पोस्ट लिख कर खुश होना चाहता हूँ :)

Kapil Sharma said...

thnx for visit :)