आस्मां के दामन में बिखरे पड़े हैं कितने पल
टिमटिमाते, झिलमिलाते, जलते औ' बुझते पल
जब कोई पल बुझ जाता हैं
सुना हैं आस्मां के सिने में
इक सुराग छोड़ जाता हैं
उस सुराग से ना आवाज गुजरती हैं
ना रौशनी ही गुजर पाती हैं
मेरे सारे ख्वाब मगर
उसी रास्ते से आते हैं, जाते हैं
2 comments:
bahut accha poem hai...lekin suraag aur andhera aur roshni...kuch palle nahi pada...
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