एक दिन ख़ामोशी ने मुझसे पूछा,
क्या तूने मुझे सुना है?
मैंने कहा हँसकर, सुना है.
तू दबे पाँव आती है,
मुझे पदचाप सुनाई देती है.
विचारों को तू पंख लगा देती है.
मन उड़ते हुए कहाँ पहुँच जाता है.
कभी वादियों में, कभी रेत में समा जाता है.
तेरी गहराई में मैंने गोते लगाए हैं,
विचार जो उतरे तेरे पानीओं में.
फिर तैर किनारे कहाँ आ पाए है.
तेरी सैलाबी चीखें कानो में सीसा घोलती हैं.
मन में जमी कई परतें खोलती हैं.
हाँ मैंने तुझे सुना है.
एक बार नहीं हज़ार बार सुना है.
फिर ना पूछना , ऐ ख़ामोशी ,
क्या तूने मुझे सुना है?
क्या तूने मुझे सुना है?
मैंने कहा हँसकर, सुना है.
तू दबे पाँव आती है,
मुझे पदचाप सुनाई देती है.
विचारों को तू पंख लगा देती है.
मन उड़ते हुए कहाँ पहुँच जाता है.
कभी वादियों में, कभी रेत में समा जाता है.
तेरी गहराई में मैंने गोते लगाए हैं,
विचार जो उतरे तेरे पानीओं में.
फिर तैर किनारे कहाँ आ पाए है.
तेरी सैलाबी चीखें कानो में सीसा घोलती हैं.
मन में जमी कई परतें खोलती हैं.
हाँ मैंने तुझे सुना है.
एक बार नहीं हज़ार बार सुना है.
फिर ना पूछना , ऐ ख़ामोशी ,
क्या तूने मुझे सुना है?
1 comments:
bohot kamm log khamoshi ko iss nazar se dekhte honge... very beautiful.
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