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toothpaste for dinner

Saturday, August 23, 2008

तमन्ना

पलकों पे सूखे आंसुओं को अब गिरा भी दो "तमन्ना"
के किसी तरह नए मोतियों को जगह मिल जाए
रूठ ना पाए ये नए गम
के फ़िर धड़कन थर्राए
रूह मेरी हिल जाए

यह ज़ख्म पुराने हो गए हैं
इनसे दर्द अब रिसता नहीं
महसूस ही नही होता कुछ भी
लगता हैं बस रूह का कफ़न
बन गया हूँ मैं
एक बार रुला ताकि
मैं जिंदा हूँ इस बात का
मुझको भी यकीं मिल जाए

पलकों पे सूखे आंसुओं को अब गिरा भी दो "तमन्ना"
के किसी तरह नए मोतियों को जगह मिल जाए

1 comments:

Anonymous said...
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