यूँही बेमानी सा दिन था
रूठी उदास सुबह
उनींदी सी किरनें
मुंह फुलाए, खिड़की पर
बेमन सी बैठी थी
एक ओस ने जाने,
क्या ठाना?
पत्तो से गिर,
किरनो में जा बैठी
क्या किया रब जाने
मेरी सुबह मुस्कुरा उठी
Friday, June 11, 2010
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3 comments:
hey its beautiful ... :)
Its so dewy...:)
Gud one!
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