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toothpaste for dinner

Friday, June 11, 2010

एक ओस

यूँही बेमानी सा दिन था
रूठी उदास सुबह
उनींदी सी किरनें
मुंह फुलाए, खिड़की पर
बेमन सी बैठी थी

एक ओस ने जाने,
क्या ठाना?
पत्तो से गिर,
किरनो में जा बैठी
क्या किया रब जाने

मेरी सुबह मुस्कुरा उठी