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Sunday, April 11, 2010

Aftermath!!!

वक़्त से हार जाने का डर
सता रहा है इस पल को
बात ये नहीं की
हार नहीं हुयी कभी
मगर इस बार दांव लगाने
कुछ भी तो नहीं
ना कोई खुबसूरत
कांच का टुकड़ा
ना प्यारी सहेज रखी
अपनी कोई अंगूठी
बस एक ज़िन्दगी है
जिसकी कोई कीमत भी नहीं
यही बस खौफ है दिल में
के अगले खेल में
किसके सहारे
रखूँ उम्मीद जीत की

अबके हार गया तो
खेलूँगा कैसे कल को
वक़्त से हार जाने का डर
सता रहा है इस पल को

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