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Saturday, March 13, 2010

आदित्य और मैं

 आज कई दिनों बाद मुझे मेरी और आदित्य की कुछ लाइनें मिली जिन्हें हमने २००६ में यूँही खेल खेल में लिखी थी. खेल था त्रिवेणी लिखने की कोशीश. खेल काफी आसान था, हम दोनों में से जो भी कुछ लिखता उसमे से एक शब्द चुन कर अगले को देता और अगले को अपनी लाइनों में उसे शब्द का इस्तेमाल करना होता. में ये दवा नहीं करता वोह सारी लेने त्रिवेणी का व्याकरण फोलो करती हैं फिर यहाँ पेश है. तारीख थी २२/०८/२००६. और पहला शब्द था "बाईस"
आदित्य
बाईस तुम्हारे गम का समझा नहीं कभी,
हरेक शब् इस ख्याल को उधेडा कई दफा

वजह समझ न आई की मैं खुद वजह था

मैं
क्या क्या गम थे उसके दिल में
अब इस बात से क्या लेना हैं?

कब्र की परतों  को उधेडा नहीं करते

आदित्य
आज जब मैं गुजरा उस गली से फिर
तेरी यादों की परतें खुल गयी कई,

तू दिल में थी या गली के जर्रे जर्रे में

मैं
तेरे शहर के सुरूर का राज़ समझ आया,
क्यों लोग बेखुद हैं हैं यहाँ समझ आया.

जर्रे जर्रे में इश्क हैं, यहाँ, जर्रे जर्रे में मैकदा

आदित्य
कम ही सुनता हूँ इस दिल की बात अब,
के गिरहों में तब्दील हो चुके है रिश्ते यहाँ,

मुजहिरों का शहर पे इन्तेकाम हैं

मैं
क्यों दर्द लिए घूमूं चेहरे पर?
क्यों रखूँ अपनी आँखें नम?

वक़्त नाजुक है, मुजहिरों दिल को बक्श दो

आदित्य
तेरी आँखों के साहिल पे, लहरो के थपेड़े कैसे?
सैलाब उफनते दिन रात कैसे?

किसी ने ज्वार को यूँ भी चढ़ते देखा हैं?

मैं
किसी साहिल पे लगेगा इश्क अपना
इसी उम्मीद में, बहाई, तेरे ख़त से बनी नाव

रुख नाले का बदला, कागज़ की तकदीर बदल गयी

आदित्य
अपनी  बनायीं दुनिया में रहते,
इश्क पर भी चलता जोर अपना,

ना दिल ही टूटता, न दर्द ही मिलता कभी

मैं
फिर चलें हैं बज़्म-ए-दुनिया में,
फिर सामना होगा "कैसे हो?" सवाल से

खुदाया इक और झूठ की खता मुआफ हो

आदित्य
समझते नहीं हैं, दोस्त अब मुझे,
तंज देते हैं अब वो हर इक बात पर

सोचता हूँ इसमें मेरी खता क्या हैं?

मैं
मुस्कुराकर कर देता हूँ, हर बात का जवाब,
कहाँ लबों पे अब तंज होते हैं मेरे?

या रब, क्या उस शक्स ने मुझे सचमच बदल दिया?

आदित्य
याद करता हूँ जब भी वक़्त-ए-रुखसत,
चा जाता हैं अँधेरा जेहन पे,

"अलविदा", लफ्ज़ आखरी था तेरे खुश्क लबों पर


मैं
खुश्क हुवा वो गुलाब फिर,
गिर पड़ा डायरी से मेरी,

"भूल गया उसे," इस गुमाँ से यक़ीं जाता रहा

आदित्य
भूल चूका था तुझे मैं शायद,
या दुनिया में गुजरे लम्हों को जगह नहीं

याद आई तू जो देखा, डायरी पे लिखा नाम तेरा

मैं
ज़िन्दगी फिर भारी लगी मुझे,
सांसें फिर से थमी रहीं,

तुझे याद करे बगैर, ये लम्हा भी नहीं गुजरा


इस तरह और भी कई कोशिशें, मेरी और आदित्य की,  आगे कभी वक़्त मिलने पर लिखूंगा, अभी के लिए अलविदा!!!

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