"वक्त" काँधे पर भी सलीब रख कर सारा शहर घुमाओ
हर गली से ले जाओ वह कारवां,
हर घर से पत्थर बरसाओ
रख दो ताज कांटे का इसके भी सर
ताकी अक्ल ठीकाने आए
कीलें बीछा दो राह में
ताकी बेबाक कदम लड़खडाए
उसी चौराहे पर लाकर
काम तमाम कर दो इसका भी
जहाँ "उसको" सूली पर चढाया था
यह भी कम्भ्क्त आइना लीये फीरता हैं
यह भी कम्भ्क्त हमें सच दीखाते फीरता हैं
Monday, June 23, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment