इश्क मैं तेरे कोह-ए-ग़म, सर पे लिया जो हो सो हो
ऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी, छोड़ दिया जो हो सो हो
अक्ल के मदरसे से उठ, इश्क के मैकदे में आ
जाम-ए-फ़ना-ओ-बेखुदी, अब तो पिया जो हो सो हो
हिज्र की जो मुसीबतें, अर्ज़ कीं उस के रू-बा-रू
नाज़-ओ-अदा से मुस्कुरा, कहने लगा जो हो सो हो
जाम-ए-फ़ना-ओ-बेखुदी, अब तो पिया जो हो सो हो
जाम-ए-फ़ना-ओ-बेखुदी, अब तो पिया जो हो सो हो
~हज़रत शाह निआज़
ऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी, छोड़ दिया जो हो सो हो
अक्ल के मदरसे से उठ, इश्क के मैकदे में आ
जाम-ए-फ़ना-ओ-बेखुदी, अब तो पिया जो हो सो हो
हिज्र की जो मुसीबतें, अर्ज़ कीं उस के रू-बा-रू
नाज़-ओ-अदा से मुस्कुरा, कहने लगा जो हो सो हो
जाम-ए-फ़ना-ओ-बेखुदी, अब तो पिया जो हो सो हो
जाम-ए-फ़ना-ओ-बेखुदी, अब तो पिया जो हो सो हो
~हज़रत शाह निआज़
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wah
wah
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