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toothpaste for dinner

Monday, December 12, 2011

किसी से मेरी मंजिल का पता पाया नहीं जाता

किसी से मेरी मंजिल का पता पाया नहीं जाता
जहाँ मैं हूँ फरिश्तों से वहां आया नहीं जाता

मेरे टूटे हुए पा-ए-तलब का मुझ पे एहसान है
तुम्हारे दर से उठ के अब मुझसे कहीं जाया नहीं जाता

चमन तुमसे इबारत हैं बहार तुमसे हैं जिंदा
तुम्हारे सामने फूलों से मुरझाया नहीं जाता

हर एक दाग-ए-तमन्ना को कलेजे से लगाता हूँ
की घर आयी हुई दौलत को ठुकराया नहीं जाता

मोहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं
ये वो नगमा है जो हर साज़ पे गया नहीं जाता
~(मखमूर देहलवी)

2 comments:

Amit Ganguly said...

awesome one dude !! Keep up your great work !

Kapil Sharma said...

glad u liked it :)