तुम मुझे पूछते हो ‘जाऊँ’?
मैं क्या जवाब दूं तुम्हीं कहो।
‘जा ...’ कहते रुकती है जबान
किस मुँह से तुमसे कहूँ रहो!
सेवा करना था जहाँ मुझे
कुछ भक्ति-भाव दरसाना था।
उन कृपा-कटाक्षों का बदला
बलि होकर जहाँ चुकाना था।
मैं सदा रुठती ही आयी,
प्रिय! तुम्हें न मैंने पहचाना।
वह मान बाण-सा चुभता है,
अब देख तुम्हारा यह जाना॥
~सुभद्रा कुमारी चौहान
Picture courtesy: http://e-nidhi.com/
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