...वैसे, डरता तो मैं किसी के बाप से नहीं
एक बस सिरहन सी दौड़ जाती है
जब वालेद की हाथों की छड़ी और,
आँखों में दर्द की छलकती,
तस्वीर ज़ेहन में कौन्दती है
...वैसे, डरता तो मैं किसी के बाप से नहीं
लेकिन चेहरे से तेरे रंगों नूर
कम होने की आहट भी गर हो जाये
खौफ दौड़ा भगाकर, ख्यालों को
ख़्वाबों ही सरहदों तक, खदेड़ देता हैं
...वैसे, डरता तो मैं किसी के बाप से नहीं
मगर यूँही जब दिलो दिमाग
दुनियावी उधेड़बुन से
पनाह तलाशते, उस दामन का
उफक सोचते हैं, रूह थर्रा जाती हैं
...वैसे, डरता तो मैं किसी के बाप से नहीं
sahi hai boss. ek dum different. वैसे, डरता तो मैं किसी के बाप से नहीं.
ReplyDeleteLadylike Post. This record helped me in my college assignment. Thnaks Alot
ReplyDeletethnx Eyes and ANONYMOUS
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